हाथी और चींटी
चींटी और हाथी
एक चींटी थी और एक हाथी.. हमेशा हाथी चींटी को अपना रौब, वजन दिखाने की कोशिश करता..चींटी को अपना वजूद भी मालूम और वजन भी इसलिए वह जिस राह पर हाथी उस राह को ही बदल देती। जंगल में अपने वजन और ताकत का खौफ दिखाकर हाथी ने कई और प्राणियों को अपने साथ कर लिया और चींटी को रौंदने की कोशिश करता रहा। दिन, महीने, साल बीतते गए हाथी ने बार बार चींटी का वजूद पैरो तले कुचलने का प्रयास किया। चींटी की सूंघने की शक्ति बड़ी तेज उसे हाथी के हर दाव और चाल का पता देर सबेर चल ही जाता फिर भी वह अपने आप में मस्त।यह सब हाथी को गवारा नहीं, वह जब कभी चींटी नजर आती उसे कुचलने का प्रयास करता।इतना बड़ा हाथी चींटी पर वार करे और नजर न आए यह भी प्रयास करे।जंगल के प्राणी बेचारे छोटे से जंगल में हाथी का साथ दे या चींटी की खैरियत के लिए उसे आगाह करे यही समझ नही पाए। इधर हाथी चींटी को निस्तेनाबुत करने का मुगालता अपनाता तब तक चींटी एक और लकीर खींच लेती। हाथी से ज्यादा चर्चा चींटी की कैसे यही सोच सोचकर हाथी की एनर्जी खत्म हो रही है..सदियों से यह प्रचलन में है की चींटी की वजह से ही हमेशा हाथी बौराया है…चींटी जब तक जमीन पर अपनी लाइन में चल रही है सब ठीक है लेकिन जैसे ही हाथी की सूंड में घुसती है फिर क्या होता है सबको मालूम है..!!