अंतिम यात्रा और स्वागत यात्रा दोनों को देख मेरे शहर की आंखे रो रही है …
✍🏼 हेमंतचंद्र बबलू दुबे
स्व. श्री जी डी खंडेलवाल जी,स्व. विनोद डागा जी, स्व.श्री युवराज सिंह परिहार जी,स्व. श्री सुभाष आहूजा जी
मेरे शहर की वे पुरानी आंखे जो उस समय बच्चों की स्नेह से भरी आंखे थी ,उन आंखों ने जो दृश्य और घटनाएं देखी हैं उससे ही मेरा शहर मानवता इंसानियत सद्भावना के लिए जाना पहचाना जाता रहा है। मेरे शहर की आंखों ने वह दृश्य देखा है जब इस जिले के सबसे प्रतिष्ठित राजनेता की मृत्यु अकस्मात 25 दिसम्बर से ठीक एक दिन पूर्व 24 दिसम्बर को हो गई । सारी दुनिया में गिरजाघर रोशनी से नहा रहे थे,25 दिसम्बर की प्रार्थनाओं के साथ घंटियां बज रही थीं लेकिन दुनिया में मेरे शहर का गिरजाघर अंधकार में डूबा हुआ था, गिरजाघर में 25 दिसम्बर की विशेष प्रार्थना सभा आयोजित नहीं हुई, आतिशबाजी नहीं हुई, फटाखे नहीं छोड़े गए क्योंकि बैतूल की सरजमी का संघर्षशील राजनेता ने हम सभी को अलविदा कह दिया था । ईसाई समुदाय ने कहा आज बैतूल शोक में है, प्रभु का जन्मदिन आज नहीं कल मनाया जा सकता है और दुनिया में अपने व्यवहार से इंसानियत, मानवता, सद्भावना का वह संदेश दे दिया जिसके लिए जिसज क्राइस्ट का जन्म दुनिया में हुआ था। यह था मेरा शहर बैतूल और उसकी सोच,जिसके व्यवहार से दुनिया ने इंसानियत सद्भावना मानवता का संदेश सीखा। मेरे शहर की आंखों ने देखा है जब एक लोकप्रिय राजनेता ने ठीक दिवाली के दो दिन पूर्व धनतेरस पर अकस्मात हम सभी को अलविदा कह दिया और मृत्यु भी कही और नहीं परमात्मा के दर्शन करते हुए हाथ जोड़ते हुए की हे प्रभु! मेरे शहर का हर नागरिक खुशहाल, स्वस्थ, प्रसन्न रहे आपसी स्नेह , सद्भावना से मानवता इंसानियत की सेवा के साथ जी सके और इस दुखद समाचार ने उस दिन मेरे शहर ने धनतरेस की रोशनी नहीं की थी, मेरे नागरिकों ने घर के सामने दीपक नहीं जलाए थे क्योंकि उनके प्रिय राजनेता ने इस शहर को अलविदा कह दिया था। मेरे शहर की आंखों ने देखा है जब बैतूल के जनप्रिय नेता का सड़क पर सुबह की सैर करते हुए अस्पताल के ठीक सामने निधन हो गया और उसी दौरान जिला स्तरीय फुटबॉल प्रतियोगिता का आयोजन स्थानीय लाल बहादुर शास्त्री स्टेडियम में चल रहा था जिसका उस दिन फाइनल मैच खेला जाना था, मेरे शहर के खिलाड़ियों ने निर्णय लिया कि फाइनल मैच आज इस दुःख की घड़ी में नहीं खेला जायेगा और मैच स्थगित कर दिया गया,स्टेडियम में खिलाड़ियों ने मैच खेलने के स्थान पर दिवंगत आत्मा की शांति के लिए दो मिनट का मौन रख श्रद्धांजलि अर्पित की । यह थी मेरे शहर की खिलाड़ी भावना।यह थी मेरे शहर में हर दिल में बसती वह संवेदनशीलता जो हमारे बीच इंसानियत सद्भावना मानवता की भावनाओं को मजबूत करती थी। आज मेरे शहर की आंखे राजनेताओं का स्वागत गमगीन माहौल में होते देख रही हैं ।आज मेरे शहर की आंखों ने वह दृश्य देखा जब एक राजनैतिक संत की अर्थी नम आंखों से धीरे धीरे अपनो के कंधों पर अपने संघर्ष की कहानी कहते अंतिम यात्रा पर निकल रही थी दिल रो पड़ा। वही शहर के दूसरे छोर से मेरे शहर की आंखों ने समर्थकों के गगनभेदी नारों के बीच , नौजवानों के कदम डी जे की धुन पर थिरकते हुए अपनी स्वागत यात्रा को निकलते देखा। आखिर क्या अब मेरे शहर ने इंसानियत, मानवता, सद्भावना की परिभाषाओं को बदल दिया है? क्या मेरे शहर ने यह बात तय कर ली है कि जो चला गया उसका शोक कैसा? जो पद पर आया है उसका स्वागत उसी दिन हो यह आवश्यक हो चला है ? जिस दिन वह नगर सीमा में प्रथम बार पद का सेहरा बांधकर शहर में प्रवेश कर रहा है उसी दिन स्वागत रैली निकले भले ही मेरे शहर में सार्वजनिक जीवन में साथ काम कर रहे किसी राजनेता , कार्यकर्ता की अर्थी उठ रही हो।मेरे शहर की सड़के चौड़ी हो रही है, राजनेताओं के और उनके चाहने वालों के दिल और सोच छोटी हो रही है , मेरे शहर में Lenskart के शो रुम से खुल रहे है जिसे मेरे शहर की आंखे चकाचौंध तो देख रही है लेकिन मेरे नागरिक की आंखे सद्भावना के दृश्य देखने के लिए तरस रही है। मेरे शहर की आंखे अब राजनेताओ के स्वागत में अंधी हो चली है जिसमें इंसानियत मानवता सद्भावना का कोई अर्थ नहीं। पदों के वैभव ने वह स्थान ले लिया है जिन्हें दुःख , मातम, संवेदनाओं से कोई लेना देना नहीं रहा है। बस अब तो इन पथरा गई आंखों को यही आशा है जो गा रहे है और जो सुन रहे है _रघुपति राघव राजा राम , सबको सन्मति दे भगवान।