चटकारा: स्क्रिप्ट

स्क्रिप्ट
तो ऐसा है मेड़, खेत, मिट्टी,रेत वाले एक साहेब इतवार को एक गांव में पहुंच गए।उनके साथ उनका अजीज हाथ भी था..दरअसल साहब जब गफलत में रहते है तो तीसरा हाथ साथ रखते है। हुआ कुछ ऐसा की गांव में पहुंचने के बाद एक घर के सामने खड़ी खाली ट्रैक्टर ट्राली की साहब ने महंगे मोबाइल से फोटो चटकाई और फिर शुरू हुआ तमाशा..लंबा चौड़ा खर्रा उनके अज़ीज़ तीसरे हाथ से लिखा गया।स्क्रिप्ट तैयार थी और मसौदा भी। बात पूरी पेटी पर टिकी थी और इस एक पेटी माल के हिस्सेदार भी तीन थे..एक खुद साहब, दूसरा साहब का तीसरा हाथ और तीसरा वह जिसने साहब को फोन करके अपने गांव बुलाया था। एक पेटी की हिस्सेदारी में 50 साहब के और 25-25 बाकी दोनों के तय थे। पर जिसको डराने के लिए स्क्रिप्ट लिखकर कुछ लोगों की साइन ली थी, उन्होंने जब कह दिया कि एक पेटी तो किसी भी सूरत में संभव नहीं है, तो बात आधी पेटी पर अटकी और आखिर में 10K में सब तय हुआ। बात क्योंकि 10K तक थी तो हिस्सेदारी के दो नाम घट गए। अब साहब तो सीधे हाथ रंगने से रहे तो उन्होंने अपने तीसरे हाथ को इशारा किया।बेचारा सुख दुख का साथी तीसरा हाथ करता भी क्या साहब की पेशगी लेने के बाद उसने स्क्रिप्ट सामने ही फाड़ दी। साहब बाकायदा घर के सामने ही खड़े रहे। गांव आने का न्योता साहब को देने वाले को जब कोई फायदा नहीं हुआ तो उसने आज गांव की संपत्ति खुद रफ दफा कर अपने नुकसान की भरपाई कर ली। पूरा घटनाक्रम गांव में चटकारा लेकर सुना जा रहा है। जिले के बड़े साहब तक स्क्रिप्ट लिखने से लेकर स्क्रिप्ट फाड़ने तक की कहानी मय चलचित्र पहुंच गई है। अब देखना यह है कि क्या नापने वाले नपने वाले है या कहानी में ट्वीस्ट बाकी है…