✓और अंत तक पिता की लेखनी करती रही बेटे से संवाद ✓जन्म से लेकर कर्तव्यपथ पर अग्रसर होने की साक्षी बनी कविताएं परिधि फादर्स डे विशेष
यूं तो पिता और पुत्र से जुड़े तमाम किस्से आपने सुने होंगे, लेकिन क्यां आपने कभी सुना है कि एक पिता ने अपने बच्चे को काव्यात्मक सीखें दी हो। अपने बच्चे के जन्म पर पिता की लेखनी ने उसे जगहित में अर्पित कर दिया हो और बड़े होने पर इस बेटे ने पिता के शब्दों के अनुरुप ही स्वयं को देशहित के लिए सेवा की अग्रणी पंक्ति में खड़ा कर लिया। कहते है पिता-पुत्र के बीच संवाद के लिए शब्द कम होते है, लेकिन इनके मौन में जो संवाद होता है उसकी शब्दसीमा अनंत होती है। कुछ ऐसा ही रिश्ता था आईटीबीपी कमांडेंट सुभाष यादव का उनके पिता स्व. श्री फूलचंद यादव से। इनके संवाद में शब्द भले कम होते थे, अपनी कविताओं के माध्यम से उन्होंने बेटों को अनुशासन का पाठ पढ़ाया, दायित्व और कर्तव्य की सीख दी। संभवत: अपने बच्चों को कविताओं के माध्यम से जीवन का रहस्य और लक्ष्य तय करना सिखाने वाले श्री फूलचंद जी विरले व्यक्तित्व थे। बेटे के जन्म पर वंदन और अभिनंदन के शब्द लिखने वाली पिता की लेखनी ने देश सेवा के लिए चयन पर सत्-शिव-सुंदर काज करने की प्रेरणा दी। कहते है संवाद हमेशा तभी पूरा होता है जब आवाज दोनों तरफ से आए। श्री फूलचंद जी के निधन के बाद इस बेटे ने अपने पिता की लिखी रचनाओं को समेटा और डायरी के पन्नों में लिखी कविताओं ने साहित्य का स्वरुप लेना शुरु कर दिया। उनका पहला बाल कविता संग्रह “एक थी चिडिय़ा” पिता के लिए बेटे की शब्दाजंलि थी। सुभाषजी नें अपने शब्दों में पिता (बाबूजी) के व्यक्तित्व और कृतित्व को न सिर्फ सहेजा अपितु पूरी दुनिया को अपने पिता की प्रेरक, गूढ़ एवं अर्थ भरी लेखनी से अवगत कराया।
स्व. फूलचंद यादवजी का परिचय
श्री फूलचंद यादवजी का जन्म 3 अगस्त, 1949 को बस्ती जिले के अहरा नामक गांव के एक धार्मिक परिवार में हुआ था। इनके पितामह श्री शिववरन यादव भक्त के नाम से एवं पिता श्री रामबुझरत यादव पुजारी के नाम से जाने जाते थे। इनकी प्राथमिक शिक्षा घर पर ही रामायण से हुई थी तथा सीधे चौथी कक्षा में एडमिशन हुआ। गोरखपुर विश्वविद्यालय से इन्होंने उच्च शिक्षा प्राप्त की। शिक्षा प्राप्त करने के पश्चात मगहर,संत कबीर नगर तथा जनता इंटर कॉलेज, लालगंज, बस्ती में अध्यापन कार्य करने लगे। अध्यापन के साथ टीचर वेलफेयर यूनियन, धर्म एवं समाजसेवा जैसे कई सामाजिक कार्यों से जुड़े रहे। 27 अगस्त, 2022 को इनका देहावसान हो गया। फूलचंद जी हृदय से कवि थे और गद्य मात्र वैचारिक साधन था। अध्ययन-अध्यापन के साथ-साथ स्वान्त: सुखाय के लिए निरंतर लेखन कार्य करते रहे, किंतु रुचि को कभी प्रसिद्धी प्राप्ति का जरिया नहीं बनाया। इनकी कविताओं में परिवार-पे्रम, देश-पे्रम, प्रकृति-प्रेम, ईश्वरीय-चेतना तथा मानवीयता सहज ही चित्रित है। बिना लाग-लपेट के सहज एवं प्रवाहात्मक शैली में गीत, गजल, मुक्तक एवं छंदबद्ध कविताओं में जीवन मूल्यों की स्थापना के प्रति अत्यंत सजग दिखाई देते है।
” बेटे के जन्म पर पिता की लेखनी से उद्यृत कविता “
ए मेरे तन-मन, जीवन-धन।
तेरा नमन हो, तेरा वंदन, तेरा स्वागत, तेरा अभिनंदन
पाकर तुझको खुशियां लौटी, दूर हुआ सब सूनापन
स्वस्थ, सुरक्षित और सुसेवित, प्रमुदित, विकसित अपनापन,
आने से तेरे ऐ मेरे तन धन, चहक उठा मेरा मन कानन,
मन की सुप्त चेतना जागृत, महक उठा मेरा घर आंगन,
विघ्न तुझे सोपान सरीखे, विष विषधर जेसे हरिहर,
तेरा जीवन जगहित अर्पित तुझे समर्पित तन-मन-धन।
” पुत्र के आईटीबीपी कमांडेट बनने पर लिखा गर्व और कर्तव्यनिष्ठा का पाठ ”
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मेरे प्यारे युग-युग जियो, जीवन पथ निर्माण करो।
अपने तन-मन, बुद्धि-विवेक से, प्रतिपल जगहित कर्म करो।।
जगहित में ही निज हित समझो, सदा सुरक्षित रह निश्चिंत,
कभी न ताप लगे तन-मन पर, तन-मन शीतल पावन चित।
राष्ट्रभूमि हित हर्षित अर्पित, उत्तम पथ निर्माण करो।।
तप्त धरा पर वर्षा जल सम, मेरे जीवन में आकर,
भूख-प्यास, पीड़ा-क्लेश सब, दूर हुए तुमको पाकर।
पास पड़ोस प्रफुल्लित प्रतिपल, ज्येष्ठ श्रेष्ठ निर्माण करो।।
सदगुरु कृपा से प्रतिपल सिंचित, कभी नहीं सदमार्ग से विचिलित,
कर्म मार्ग पर सदा समर्पित, जीवन निधि से हर्षित पुलिकित।
भाई, बंधु व सहपाठी हित, श्रेष्ठ मार्ग निर्माण करो।।
जीमन में जो जहां भी आये, उन्हें अंग स्वीकार करो,
उनके सुख-दुख समझ के अपना, यथा साध्य संतुष्ठ करो।
सभी राष्ट्रहित एक इकाई, यही भाव उत्पन्न करो।।
जहां भी रहो अपने गुण का, सुन्दरतम विस्तार करो,
सभी हो हर्षित और प्रफुल्लित, ऐसा सद्-व्यवहार करो।
चहुंदिशि सभी काल में चर्चित, सत्-शिव-सुन्दर काज करो।।
भारत माता,मां है तेरी, संविधान है पिता समान,
सभी नागरिक बंधु तुम्हारे, उनका सुख-दुख अपना मान।
सब जन एक नेक होकर, अब श्रेष्ठ राष्ट्र निर्माण करो,
मेरे प्यारे युग-युग जीवो, जीवन पथ निर्माण करो।।
“एक थी चिड़िया” बाल कविता संग्रह और पिता के लिए बेटे की शब्दाजंलि
पिता का अवसान बच्चों के जीवन की वह रिक्तता है जिसकी आपूर्ति संभव ही नहीं है। 27 अगस्त 2022 को जब फूलचंद यादवजी का देहावसान हुआ तो एक मजबूत बेटे की आंखों में सबने नमी देखी। इस बेटे का अपने पिता को अपनी स्मृतियों मेंंं चिरकाल तक जीवंत रखने और उनके प्रेरणादायी विचारों को सहेजने के साथ-साथ उन्हें जनमानस तक पहुंचाने का संकल्प जब साकार हुआ तो, “एक थी चिडिय़ा” जैसा प्रेरणादायी एवं रोचक बाल साहित्य, साहित्य जगत को मिला। पिता ने हमेशा अपनी कलम से बेटे को प्रेरित किया और अपने दायित्वों का बोध कराया…जब “एक थी चिड़िया” बाल कविता संग्रह का सम्पादन प्रारंभ हुआ तो इस बेटे ने अपने पिता के विराट व्यक्त्वि का परिचय अपने शब्दों से कराने का प्रयास किया। पिता के लिए संभवत: पहली बार चली एक सैन्य अधिकारी बेटे की कलम में उनके के जीवन, स्वभाव, स्नेह और उनके द्वारा दी गई सीखों का अदब देखने मिला। “एक थी चिडिय़ा” पिता के अवसान से बेटे के भौतिक जीवन में आई रिक्तता की भावनाओं से भरे आत्मीय शब्दों से पूर्ति का प्रयास निसंदेह अनुकरणीय है। पुत्र के शब्दों में जीवंत हो उठे बाबूजी
बाबूजी अत्यंत ईमानदार कर्मठ एवं कर्तव्यपरायण व्यक्ति थे। जब तक वे नौकरी में रहे उनका पूरा ध्यान सिर्फ अध्ययन-अध्यापन में लगा रहा। सेवानिवृत्त होने के पश्चात उनका पूरा समय पढऩे-लिखने में व्यतीत होने लगा। उन्होंने अपने जीवन के संघर्ष में कभी भी धैर्य और हिम्मत नहीं खोया। उनका मानना था कि, जितना घिसे जाओंगे उतना ही चमकोगे, सोचने-समझने की क्षमता बढ़ेगी। इसलिए संघर्ष में कभी घबराना नहीं चाहिए। जीवन में यदि संघर्ष है, तो समझिए कि आप इस संघर्ष के काबिल है, आप और भी खरे होकर प्रस्फुटित होंगे। अक्सर वे बीज का उदाहरण दिया करते थे। वे रुकने में विश्वास नहीं किया करते थे, उनका मानना था कि अपने आपको बांधने के बजाय विस्ताार देना चाहिए,चारों तरफ अपनी सकारात्मक ऊर्जा फैलाना चाहिए और जहां भी रहें, वहां खुशियां और प्यार फैलाना चाहिए। एक कहावत है -बाढ़े पूत पिता के धर्म, खेती उपजे अपने कर्म। पिताजी का यह विचार, शिक्षा और धर्म का फल हम सभी भाईयों को मिला है। आज वे भौतिक रुप से हमारे बीच नहीं है, किंतु हमारा प्रयास है कि उनके विचार लोगों तक पहुंचा सके। इसी क्रम में पहला प्रयास है उनकी बाल कविताओं को प्रकाशित करवाना, जिसमें उनका बच्चों के प्रति पे्रम के साथ प्रकृति-प्रेम भी साफ झलकता है। वे इन कविताओं के माध्यम से सदैव हमारे बीच उपस्थित रहेंगे…