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वन अधिनियम 1927 की धारा 52 में वाहनों को राजसात करने का खेल

ममूली कीमत की वन उपज फिर भी लाखों के वाहन राजसात

भारत सेन, लेखक वरिष्ठ अधिवक्ता है

मप्र राज्य भारतीय वन अधिनियम 1927 की धारा 52 में राज्य सरकार के संषोधनों के कारण वाहनों को राजसात किया जाता हैं। अधिनियम 1927 के अंतर्गत बनाए गए नियमों में भी राजसात किए जाने का विधान किया गया हैं। कानून यह नहीं कहता हैं कि प्रत्येक वन अपराध में वाहनों को राजसात किया जाना आवष्यक हैं। यह वन अधिकारी का विवेक का विषय हैं। वन विभाग कानून का दुरूपयोग करता हैं, विवेकाधिकार मनमौजी का अधिकार बन जाता हैं। मामूली कीमत की वनोजप के लिए भी लाखों रूपए का वाहन राजसात हो जाता हैं।
प्रधान मंत्री आवास योजना में मामूली धनराषि उपलब्ध करवाई जाती हैं। इस धनराषि में मकान बनना बेहद कठिन होता हैं क्योंकि खनिज सबसे ज्यादा महंगा हैं। ग्रामीण क्षेत्रों में खनिज की व्यवस्था ग्रामीणों ने अपने अपने स्तर पर करना प्रारंभ कर दिया था। खनिज विभाग एवं वन विभाग ने खनिज के वाहनों को पकड़ना चालू कर दिया। खनिज विभाग ट्रैक्टर ट्राली को पकड़ता हैं तो वह राजस्व वसूली का एक मामला बन जाता हैं और उसी वाहन को वन विभाग पकड़ता हैं तो राजस्व दस्तावेजो के अभाव में मामला वन उपज के अवैध परिवहन, उत्खनन का बन जाता हैं।
खान एवं खनिज अधिनियम 1957 में खनिज का अवैध परिवहन उत्खनन एवं भण्डारण अपराध हैं। खनिज कानून एवं नियम में यह राजस्व वसूली योग्य मामला हैं। कानून में खनिज अपराध की जॉच का अधिकार खनिज निरीक्षक को प्राप्त हैं। राजस्व वसूली का क्षेत्राधिकार राजस्व न्यायालय को प्राप्त हैं। कानून के दांडिक प्रावधानों का प्रयोग राज्य सरकार नहीं करती हैं जिससे खनिज अपराध एक कारोबार बन गया हैं।
मध्य प्रदेष राज्य का वन विभाग सार्वजनिक मार्ग पर खनिज का परिवहन कर रहे वाहनों से राजस्व विभाग की रायल्टी की रसीदों की पूछताछ करता हैं और नहीं मिलने पर वन अपराध का मुकदमा दर्ज कर लेता हैं। वन अपराध दस्तावेजो में अवैध उत्खनन स्थल कागजो पर आरक्षित वन क्षेत्र बता दिया जाता हैं। प्राधिकृत अधिकारी एवं उप वन मंडलाधिकारी वन कानून की धारा 52 की कार्यवाही प्रारंभ कर देते हैं। राजस्व मामलों की अदालत की तरह ही एक अदालत लगती हैं। अभियोजन पक्ष की ओर से वनकर्मी गवाही देते हैं, वाहन स्वामी से प्रतिपरीक्षण करने के लिए कहा जाता हैं। इस अदालत की खास बात यह हैं कि वाहन स्वामी अपना कानूनी पक्ष रखने के लिए वकील नियुक्त नहीं कर सकता हैं। राज्य सरकार की तरफ से भी विधिक सेवा नहीं दी जाती हैं। वनकर्मी पेषेवर गवाह होते हैं जबकि वाहन स्वामी को वन कानून में बचाव क्या लेना हैं, पता नहीं होता हैं। वाहन स्वामी करीब 10 वनकर्मियों से करीब 10 सवाल पूछता हैं। प्राधिकृत अधिकारी करीब एक साल बाद वाहन राजसात का आदेष कर देते हैं।
विधि, न्याय एवं मानवाधिकार का सवाल यह हैं कि भारतीय वन अधिनियम 1927 की धारा 52 में प्राधिकृत अधिकारी की अदालत विचारण न्यायालय की तरह साक्ष्य दर्ज कर सकती हैं? दूसरा सवाल हैं कि मामूली कीमत की वनोपज के लिए लाखों रूपए का वाहन राजसात किया जाना क्या उचित हैं? विकल्प में कौन सा दण्ड दिया जा सकता हैं? तीसरा सवाल यह हैं कि वन क्षेत्र के बहार खनिज का परिवहन कर रहे वाहन की जॉच का अधिकार क्या वन विभाग को विधि में प्राप्त हैं? प्राधिकृत अधिकारी की अदालत वन कानून में क्या एक विचारण न्यायालय हैं? क्या वन कानून में अधिवक्ता को वाहन स्वामी की ओर से पक्ष रखने का अधिकार प्राप्त नहीं हैं?
अपीलीय अधिकारी एवं मुख्य वन संरक्षक की अदालत में धारा 52 (ख) में अपील पर उठाएॅ जाते हैं। मुख्य वन संरक्षक के समक्ष वकील को अपील में पैरवी का अधिकार हैं तो प्राधिकृत अधिकारी के समक्ष गवाहों के परीक्षण का अधिकार क्यों नहीं हैं? सार्वजनिक मार्ग पर खनिज का परिवहन कर रहे वाहन में खनिज विभाग की ईटीपी नहीं होने से यह वन उपज कैसे बन जाती हैं? जबकि इस बात की संभावना हैं कि राजस्व क्षेत्र के छोटे नदी नालों से खनिज लाया गया होगा। मुख्य वन संरक्षक की अदालत में भारत की सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट के फैसलों को पेष किया जाता हैं। मुख्य वन संरक्षक तो वन विभाग के प्रवक्ता हैं, जो कि प्राधिकृत अधिकारी के निष्कर्षो को दोहराते रहते हैं।
भारतीय वन अधिनिमय 1927 की धारा 52 में तमाम तरह की कमियॉ मौजूद हैं जो वन विभाग को अपने ही नागरिको की संपत्ति हड़पने का मौका देती हैं। अधिनियम की धारा 52 (4) में वाहन में हित रखने वाले वाहन स्वामी को मात्र सुनवाई का अवसर दिया जाता हैं लेकिन फायनेंस कंपनी को सुनवाई का कोई अवसर नहीं दिया जाता हैं बल्कि वन परिक्षेत्राधिकारी फायनेंस कंपनी को सूचित करना भी आवष्यक नहीं समझते हैं। वाहन राजसात हो जाने के बाद फायनेंस कंपनी जिसके पास संपत्ति बंधक हैं, वाहन स्वामी से वसूली कैसे करेंगी ?
भारतीय वन अधिनियम 1927 की धारा 32 एवं 41 में राज्य सरकार को नियम बनाने की शक्ति दी गई हैं लेकिन खनिज के संबंध में नियम बनाने की शक्ति प्राप्त नहीं हैं। खान एवं खनिज अधिनियम 1927 में राज्य सरकार को गौण खनिज नियम बनाने की शक्ति प्राप्त हैं। वन कानून में वन विभाग खनिज का व्यापार तो नहीं करता हैं। विधि, न्याय एवं मानवाधिकार का प्रष्न यह हैं कि खनिज के उत्खनन, परिवहन, भण्डारण के नियम बनाने की कानून में राज्य सरकार को शक्ति प्राप्त नहीं हैं तो वन विभाग ने गौण खनिज की दरों का निर्धारण कैसे कर रखा हैं? वन विभाग खनिज को कभी वनोपज बताता हैं तो कभी लधु वनोपज बताता हैं।
भारतीय वन अधिनियम 1927 की धारा 53 में वन विभाग को वाहनों को प्रतिभूति पर मुक्त करने की शक्ति प्राप्त हैं। वन विभाग वाहन का मूल्य के बाराबर की बैंक गैरंटी लेकर वाहन को मुक्त कर सकता हैं। प्राधिकृत अधिकारी इससे सहमत नहीं हैं क्योंकि राज्य सरकार ने इस संबंध में कोई प्रारूप तैयार नहीं किया हैं। अपीलीय अधिकारी वाहन को मुक्त करने के लिए तैयार नहीं हैं क्योंकि उनका एक मात्र कार्य प्राधिकृत अधिकारी के आदेष को दोहराना मात्र हैं।
भारतीय वन अधिनियम 1927 की धारा 55 में एक बड़ा खेल किया गया हैं। संपत्ति अगर सरकार की नहीं हैं और वह वनोपज हैं तो विचारण न्यायालय द्वारा दोषसिद्ध किए जाने पर ही वाहन राजसात की कार्यवाही प्रारंभ की जायेगी। एक व्यक्ति ने अपने खेत में मिट्टी का उत्खनन कर परिवहन किया हैं या फिर बॉस कटवा कर परिवहन कर रहा हैं। यह दोनो ही वनोपज हैं और वाहन वन विभाग ने जप्त कर लिया हैं तब धारा 55 लागू होगी। प्रयोग में यह देखा गया हैं कि धारा 55 की दिषा में वन परिक्षेत्राधिकारी कभी जॉच ही नहीं करते हैं। वाहन स्वामी कैसे सिद्ध करेगा कि यह वन उपज नहीं हैं?
भारतीय वन अधिनियम 1927 में वन उपज यदि 01 हजार रूपए से कम मूल्य की हैं तो वाहन पर 10 हजार रूपए का अर्थदण्ड आरोपित कर मुक्त कर दिया जाता हैं। वन उपज यदि 01 हजार रूपए से अधिक हैं तो मानलो कि 02 हजार रूपए हैं तो 07 लाख रूपए मूल्य का ट्रैक्टर ट्राली को राजसात कर लिया जायेगा। कानून में प्रावधान तो नहीं हैं लेकिन वन विभाग ने गौण खनिज की दरें तय कर रखी हैं जिसका उसे कोई अधिकार नहीं हैं। मप्र राज्य के प्रत्येक जिले में वन विभाग ने गौण खनिज की अलग अलग दरें तय कर रखी हैं। कानून एवं न्याय के मापदण्ड भले ही इसकी अनुमति नहीं देते हैं फिर भी वन विभाग में मामूली कीमत की वनोपज के लिए लाखों रूपए का वाहन हड़प लिया जाता हैं।

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