पति के शहीद होने की सूचना 1 अप्रैल को मिली, पत्नी समझी अप्रैल फूल बनाया…!
जरा याद करो कुर्बानी…
✓पति के शहीद होने की सूचना 1 अप्रैल को मिली, पत्नी समझी अप्रैल फूल बनाया…!
✓पार्थिव देह को लेने लद्दाख पहुंची वीरवधु गंगा शहीद सुखनंदन पाल का अस्थि कलश लेकर लौटी थी बैतूल
✓सियाचीन में ड्यूटी के आखरी दिन ली अंतिम सांस, ऑपरेशन मेघदूत में शहीद हुआ था बैतूल का सपूत
गौरी बालापुरे पदम/परिधि न्यूज बैतूल
1 अप्रैल को पापा के दोस्त का टेलीग्राम आया कि पापा सियाचीन में वह शहीद हो गए है..तारीख एक थी इसलिए किसी को यकीन नहीं हुआ, लगा कि अप्रैल फूल मना रहे होगें…लेकिन दूसरे दिन जब कम्पनी कमांडेंट का टेलीग्राम आया तो मम्मी के पैरों तले जमीन खिसक गई। उन्हें पापा की पार्थिव देह लेने के लिए लद्दाख बुलाया गया, लेकिन उन्हें लद्दाख पहुंचने में ही दस दिन लग गए..लम्बे अंतराल तक पार्थिव शरीर को सुरक्षित रख पाना संभव नहीं था इसलिए राजकीय सम्मान के साथ उनका सियाचीन में ही अंतिम संस्कार कर दिया गया। जब नानाजी और मामाजी के साथ मम्मी लद़दाख पहुंची तो उन्हें पापा की अस्थियों का कलश सौंप दिया गया। आज उन्हीं शहीद की शहादत का दिन है। मां के बताये यह संस्मरण आज पिता के शहादत दिवस पर उनके छोटे बेटे हरीश पाल ने परिधि न्यूज से साझा किए। दो साल पहले ही हरीश की मां शहीद सुखनंदन पाल की धर्म पत्नी वीर वधु गंगा पाल का भी निधन हो चुका है।
शहीद हवलदार सुखनंदन पाल ने शहादत के कुछ दिनों पहले ही पत्नी गंगा पाल को चिट्ठी लिखी थी कि 31 मार्च को उनके सियाचीन में 6 माह पूरे हो जाएंगे, इसके बाद घर आकर वह वापस ड्यूटी पर भटिंडा जाएंगे..लेकिन नियति को शायद यह मंजूर नहीं था, जिस दिन उनका सियाचीन में ड्यूटी का आखरी दिन था वही उनके जीवन का भी अंतिम दिन बन गया और बैतूल का यह मां धरती की गोद में अपनी कर्मस्थली पर ही हमेशा के लिए सो गया। पत्नी से घर लौटकर आने का वादा करने वाले इस वीर की घर वापसी तो हुई लेकिन एक कलश में…आज उनकी शहादत दिवस पर परिधि न्यूज ने उनकी शहादत एवं जीवन से जुड़ी महत्वपूर्ण बातों को साझा करने का प्रयास किया है-
पारिवारिक पृष्ठभूमि
शहीद सुखनंदन पाल का जन्म 5 दिसंबर 1957 को उड़दन के कृषक परिवार में हुआ। माता-पिता, दो भाई एवं तीन बहनों के परिवार में सुखनंदन ने सैनिक बनकर देश सेवा की राह चुनी और अपने परिवार की रीढ़ बनकर तीनों बहनों की शादी भी कराई। उनका विवाह 9 मई 1981 को परासिया निवासी रामरतन पाल की सुपुत्री गंगा पाल से हुआ था। श्री पाल के तीन बेटे संदीप पाल जिनका जन्म 3 अक्टूबर 1982 को हुआ वह मल्टीनेशनल कंपनी में ऑटोमोटिव कोच है, प्रदीप पाल का जन्म 15 नवंबर 1984 को हुआ जो शिक्षा विभाग में सेवारत है। वहीं सबसे छोटे बेटे हरीश पाल कन्स्ट्रक्शन वर्क, कॉन्ट्रेक्टर एवं स्टोन क्रेशर के संचालक है। अपने पिता को हरीश ने फोटो में ही देखा है, जब वह तीन माह के थे तब हवलदार सुखनंदन पाल शहीद हो गए थे।
शहीद सुखनंदन की सेवा सफर
शहीद सुखनंदन पाल वर्ष 1977 में सिग्रल कोर में भर्ती हुुए चार साल तक आसाम में पोस्टेड रहने के बाद लुधियाना, भटिंडा एवं लद्दाख (जम्मू-कश्मीर) में दो-दो साल सेवाएं दी। इसके बाद मेरठ में एक साल की पोस्टिंग के बाद वे इस सेवा के सफर में लांस नायक से नायक और फिर हवलदार बनकर सियाचीन पहुंचे। सियाचीन में ऑपरेशन मेघदूत के तहत उनकी पोस्टिंग 6 माह के लिए पोस्टिंग की गई थी। दरअसल माइनस 50 डिग्री तापमान में अधिक समय के लिए एक सैनिक की ड्य़ूटी नहीं लगाई जाती। 18 हजार 870 फीट ऊंचाई पर सियाचीन में ड्यूटी हवलदार सुखनंदन का 31 मार्च 1987 को ड्यूटी का आखरी दिन था। सियाचीन में जो भारत की पोस्ट है वह पाकिस्तान और चीन के सीमा के बीच है। अक्सर शाम के समय चीन और पाकिस्तान भारत की इस पोस्ट को तबाह करने के लिए बर्फ से ढके पहाड़ों पर हवाई फायरिंग करते है। ताकि बर्फबारी के डर से भारतीय सैनिक पोस्ट छोड़ दे। ऑपरेशन मेघदूत देश की पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरागांधी ने इसी पोस्ट की सुरक्षा के लिए प्रारंभ किया था और पिछले करीब 40 वर्षों से भारतीय थल सेना के जवान इस पोस्ट की सुरक्षा कर रहे है। 31 मार्च को सुखनंदन पाल डे ड्यूटी के बाद अपने करीब 40 अन्य साथियों के साथ कैम्प में लौटे। इसी बीच चीन एवं पाकिस्तान द्वारा फायरिंग शुरु की जिससे पहाड़ों का बर्फ कैम्प पर गिरने लगा और इतनी अधिक बर्फबारी हुई कि जिन कैम्पों में सैनिक आराम कर रहे थे वह पूरी तरह बर्फ से ढक गए। तीन दिनों तक लगातार तलाश के बाद कुछ जवानों को तो बचाया जा सका लेकिन 21 जवान शहीद हो गए। अब तक सियाचीन में ऑपरेशन मेघदूत में करीब 800 जवान शहीद हो चुके है, जिनके नाम लद़दाख के वॉर मेमोरियल में अंकित है। इन शहीदों में एक नाम बैतूल के वीर सपूत सुखनंदन पाल का भी है। श्री पाल के नाम से 800 मीटर का एक मार्ग भी लद्दाख में है।
अस्थि कलश में घर लौटा बैतूल का यह बेटा
1 अप्रैल को सुखनंदन पाल के शहीद होने की सूचना उनकी पत्नी गंगा पाल को सुखनंदन के मित्र ने टेलीग्राम से दी लेकिन गंगा को लगा कि उन्हें अप्रैल फुल बनाया जा रहा है। इसके बाद दो अप्रैल को कंपनी कमांडेट द्वारा टेलीग्राम किया और उन्हें लद्दाख बुलवाया गया। गंगा पाल का सबसे छोटा बेटा हरीश उस वक्त मात्र तीन माह का था, ऐसे में उसे नानी के पास छोडक़र पिता रामरतन पाल एवं भाई बुद्धु पाल के साथ वह दिल्ली के लिए रवाना हुई। दिल्ली से उन्हें सेना की गाडिय़ों से श्रीनगर और वहां से लद़दाख ले जाया गया। बैतूल से लद़दाख पहुंचने में ही गंगा को दस दिन लग गए थे। सेना श्री पाल का राजकीय सम्मान से अंतिम संस्कार कर चुकी थी इसलिए उन्हें लद़दाख में ससम्मान अस्थि कलश सौंप दिया गया। अस्थि कलश लेकर बैतूल लौटी गंगा के 4 साल के बड़े बेटे संदीप ने होशंगाबाद में नर्मदाजी में अस्थिविसर्जन किया। गंगा को लिखे पत्र में हमेशा सुखनंदन ने अपने बेटों और पत्नी को लेकर चिंता की। सबसे छोटे बेटे का नाम हरीश रखने का जिक्र भी एक पत्र में मिलता है। इसके अलावा उनके एक पत्र में उन्होंने लिखा है कि 1 अप्रैल को घर के लिए निकलूंगा, लेकिन वह घर लौटकर आते इसके पहले ही उनके शहीद होने की खबर घर आ गई।
शहीद सुखनंदन को सरकार ने सेवा मेडल देकर सम्मानित किया है। रेजीमेंट ने श्री पाल की शहादत के बाद परिवार को करीब 80 हजार रुपए की मदद की थी। गंगा को आर्मी ने अनुकम्पा नियुक्ति के तौर पर हास्पीटल में नर्सिंग सेवा के लिए ऑफर दिया गया था लेकिन अपने तीनों बच्चों की परवरिश की जिम्मेदारी अब उन पर थी इसलिए उन्होंने मना कर दिया।
शिक्षिका बनकर संवारा तीनों बेटो का भविष्य
बैतूल की इस वॉरविडो को आजादी के अमृत उत्सव के अवसर पर भी प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी द्वारा सम्मानित किया गया। 3 अगस्त 2022 को श्रीमती पाल का दुखद निधन हो गया। जिनका राजकीय सम्मान के साथ अंतिम संस्कार किया गया। वीरवधु गंगा का जीवन संघर्ष की मिसाल रहा। पति की शहादत के बाद उन्होंने बीएड किया और 1989 में शिक्षिका बनकर अपने तीनों बच्चों का भविष्य संवारा। गंगा के निधन के बाद उनके बेटे प्रदीप को अनुकम्पा नियुक्ति दी गई। सरकार से उनके परिवार को मदद नहीं मिली लेकिन आर्मी ने हमेशा ख्याल रखा। बच्चों की फीस में कन्सेशन एवं केंटीन कार्ड के माध्यम से उन्हें खरीदी पर छूट मिल जाती है।
नोट: शहीद सुखनंदन पाल के जीवन से जुड़े संस्मरण,,मां वीरवधु गंगा पाल द्वारा बताएं संस्मरणों के आधार छोटे बेटे हरीश पाल द्वारा परिधि न्यूज से साझा किए गए।
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