एक डॉक्टर जो सामाजिक उत्थान की सूत्रधार भी, महिलाओं को शिक्षा और स्वास्थ्य के प्रति जागरुक भी कर रही डॉ कृष्णा मौसिक
✓एक डॉक्टर जो सामाजिक उत्थान की सूत्रधार भी
✓महिलाओं को शिक्षा और स्वास्थ्य के प्रति जागरुक भी कर रही डॉ कृष्णा मौसिक
गौरी बालापुरे पदम/परिधि न्यूज बैतूल
बंजारीढाल, पाथाखेड़ा और प्रेमनगर में प्राथमिक से हायर सेकण्डरी तक शिक्षा से लेकर महानगरों में एमबीबीएस, एमएस, प्रसूति एवं स्त्री रोग विशेषज्ञ बनकर पति स्व. डॉ राजेन्द्र मौसिक के हास्पीटल खोलने के सपने को मूर्त रूप देने वाली सहृदयी डॉक्टर कृष्णा मौसिक आदिवासी समाज ही नहीं अपितु मध्यमवर्गीय परिवारों की बेटियों के लिए मिसाल बन गई है।उनका जीवन संघर्षों से भरा रहा लेकिन आज वे एक सफल, कर्मठ, संवेदनशील एवं ऊर्जावान डॉक्टर के रुप में स्वयं को स्थापित कर चुकी है। डॉ कृष्णा मौसिक को लेकर अक्सर लोग कहते है कि वह जिस तरह से उपचार करती है पेशेंट की आधी बीमारी उनकी बातों से ही ठीक हो जाती है। दरअसल किसी मरीज का डर दूर कर उसके मर्म को समझते हुए वह मरीज को विश्वास दिलाती है कि वह पूरी तरह और जल्द ठीक हो जाएंगे।
समाज के उत्थान के लिए भी समर्पित
माता-पिता के संघर्ष को देखकर आगे बढऩे वाली कृष्णा कोरकू समुदाय की संभवत: पहली एमबीबीएस, एमएस, प्रसूति एवं स्त्री रोग विशेषज्ञ है। यही वजह है कि समाज के लोग अपनी बेटियों को उनका उदाहरण देकर उन जैसा बनने प्रेरित करते है। यही नहीं डॉ मौसिक भी समाज के उत्थान एवं खासतौर से आदिवासी महिलाओं एवं बालिकाओं की शिक्षा एवं उनके स्वास्थ्य को लेकर जागरुकता लाने के लगातार प्रयास कर रही है।
स्वास्थ्य के प्रति जागरुक करने अंचलों में लगा रही शिविर
डॉ कृष्णा दूरस्थ आदिवासी ग्रामीण अंचलों में महिला एवं बालिकाओं के लिए स्वास्थ्य शिविर लगाकर उन्हें अपनी सेहत के प्रति भी जागररुक कर रही है। उनका कहना है कि महिलाएं अपने स्वास्थ्य को लेकर हमेशा लापरवाह रहती है। उनके द्वारा भीमपुर एवं घोड़ाडोंगरी क्षेत्र के ग्रामों में कुछ कैम्प लगाए गए है। आगे भी वह स्वास्थ्य शिविरों के माध्यम से अंचलों में सेवाएं देती रहेगी। आदिवासी संगठन से जुडक़र वे समाज में फैले अंधविश्वास एवं भ्रांतियों को दूर करने के अलावा बेटियों को शिक्षिक करने के लिए भी प्रेरित करती है।
जिले में पहली बार दिव्य गर्भ संस्कार समारोह का आयोजन
डॉ कृष्णा द्वारा जिले में पहली बार दिव्य गर्भ संस्कार समारोह का आयोजन भी महिला दिवस के अवसर पर किया। जैसा कि नाम से ही स्पष्ट है कि यह गर्भवती स्त्री के गर्भ में पल रहे शिशु को आधात्म और संस्कार से जोडऩे का यह अनूठा प्रयास है। वैसे भी हमारे पुराणों में वर्णित है कि गर्भस्थ शिशु मां की आंखों से दुनियां को देखता है, मां के कानों से सुनता है। महाभारत में अभिमन्यु का चक्रव्यूह भेदने का ज्ञान सर्वविदित है जो मां के गर्भ में रहते हुए उसने सुना..हालांकि मां के बीच में सो जाने की वजह से वह चक्रव्यूह से बाहर निकल पाना नहीं सुन पाया था। जिले में पहली बार दिव्य गर्भ संस्कार समारोह के आयोजन के पीछे भी यही मंशा है कि स्वस्थ मां एवं स्वस्थ संतान से स्वस्थ राष्ट्र का निर्माण होता है। जीवन सरिता में संस्कारों की सरस रसधारा सतत प्रवाहित होती रहती है, लेकिन यह संस्कार गर्भावस्था के दौरान ही आत्मा को मिले तो उसमें सहज ही दिव्यता आ जाती है। यदि मां गर्भावस्था के दौरान दिव्यता अपनाएं तो उसकी संतान नैतिक, चारित्रिक एवं दैवीय रुप से शक्तिशाली होती है।
पहली बार कोरकू महिला सम्मेलन का भी आयोजन
अपने जन्मदिन पर लोग पार्टियां करना पसंद करते है लेकिन डॉ मौसिक ने अपने जन्मदिन पर कोरकू महिलाओं के स्वास्थ्य की चिंता करते हुए समाज की अग्रणी महिलाओं के सम्मान समारोह आयोजित कर मिसाल पेश की। इस समारोह में देश की आजादी के लिए जंगल सत्याग्रह में अग्रणी भूमिका निभाने वाले स्वतंत्रता संग्राम सेनानी गंजन सिंह के परिवार से लेकर विभिन्न क्षेत्रों एवं विभागों में पदस्थ अग्रणी महिलाओं को सम्मानित कर उनकी उपलब्धियों से समाज की नई पीढ़ी को अवगत कराया गया। एक कुशल डॉक्टर के साथ-साथ समाज में व्याप्त अशिक्षा और अंधविश्वास को दूर करने में भी कृष्णा के द्वारा किए जा रहे प्रयासों की सराहना हर मंच पर होती है।