चुनौतियां और प्रताड़नाएं जिसे कभी हरा न पाई, संघर्ष और सफलता की मिसाल
आत्मनिर्भर बनने के लिए आत्मसम्मान से जीना जरुरी-डॉ मेघा वर्मा
✓आत्मनिर्भर बनने के लिए आत्मसम्मान से जीना जरुरी-डॉ मेघा वर्मा
✓चुनौतियों और प्रताडऩाएं जिसे कभी हरा न पाई, संघर्ष और सफलता की मिसाल
गौरी बालापुरे पदम/परिधि न्यूज बैतूल
अपने परिवार की लाड़ली बड़ी बेटी के अपनी लगन एवं मेहनत से डॉक्टर बनना मध्यमवर्गीय परिवार का गर्व ही है। जितनी स्वच्छंदता और स्वतंत्रता से उन्होंने अपना बचपन और शैक्षणिक जीवन जिया, उतनी ही उलझनों से उन्हें अपना कैरियर बनाने के दौर से गुजरना पड़ा। हर मुश्किल से लडऩे और खुद को साबित करने का हौसला ही था जो तमाम परिस्थितियों से वह लोहा लेती रही और खुद को हर बार साबित करती रही। हम बात कर रहे है शतायु हास्पीटल की संचालक डॉ मेघा वर्मा की। जिनका अब तक का जीवन हर महिला के लिए सबक भी है और प्रेरणा भी।
परिवार की बड़ी बेटी ने डॉक्टर बनकर अपना लक्ष्य हासिल किया हालांकि कुछ गलत फैसलों ने उनके जीवन में सुनामी जरुर ला दी थी, लेकिन सही समय पर सही निर्णय लेकर उन्होंने हिम्मत भी दिखाई और पुरुष प्रधान समाज में वर्चस्व और अपने अधिकारों के लिए वह खूब लड़ी और अभी लड़ ही रही है। महिला दिवस पर परिधि न्यूज की साहसी महिलाओं के परिचय की इस श्रृंखला में जानिए डॉ मेघा वर्मा के संघर्ष की अनकही कहानी…
बचपन से ही पढऩे में तेज मेघा के पिता एमपीईबी में पदस्थ थे, और मां होममेकर और ड्रेस डिजाइनर हैं, उन्होंने ड्रेसेज के साथ अपने बच्चों के जीवन को भी सुंदर बनाने का अथक प्रयास किया। उनकी प्रारंभिक शिक्षा ब्रिलियंट स्कूल आमला, सरस्वती शिशु मंदिर बैतूल में हुई। नवोदय विद्यालय प्रभात पट्टन में चयन के बाद आगे की शिक्षा यहां प्राप्त की। नीट एन्ट्रेंस पास कर जीएमसी भोपाल से एमबीबीएस किया और एमबीबीएस होते ही पहली पोस्टिग मुलताई सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्र मुलताई में हुई। पोस्ट गे्रजुएशन एमजीएमसी इंदौर से गॉयनोकॉलोजी में एमएस की डिग्री भी प्राप्त की। अपने परिश्रम, लगन और स्किल्स को उन्होंने खूब तराशा।शिक्षा के नए आयाम और सेवा के नए अध्याय साथ-साथ चलते रहे। पीजी करने के बाद मुलताई में पहली पोस्टिंग मिली। हास्पीटल में ऑपरेशन थियेटर फंक्शनल न होने के कारण अपने अनुभव और स्किल्स का लाभ मरीजों को न दे पाने का यहां अफसोस होता था, इसीलिए DH बैतूल में अटैचमेंट लेकर उन्होंने करीब डेढ़ साल तक यहां डॉ मेघा ने पूरी ईमानदारी से बिना घड़ी देखे अपनी सेवाएं दी।
एक फैसले ने बदल दी जिदंगी
डॉ मेघा ने जिले में पदस्थ रहते हुए मैट्रीमोनियल साइट पर अपलोड की गई मेरठ निवासी आर्थोपिडिशियन से प्रोफाईल के आधार पर विवाह किया, लेकिन वे मानती है उनका यह फैसला उनके स्थिर जीवन का सबसे अधिक दुख देने वाला गलत फैसला था। इस रिश्ते को कई तरह की प्रताडऩाओं की वजह से उन्हें तोडऩा पड़ा। डॉ मेघा बताती है कि आज भी वह भयावह रात को याद कर सिहर उठती है जब अपने छह माह के बच्चे और अपनी जान बचाकर भागकर रात के समय उन्हें बैतूल आना पड़ा था।
जिला अस्पताल में भी दी सेवाएं :
डॉ मेघा वर्मा जब ससुराल छोडक़र वापस आई डॉ मेघा ने मुलताई अस्पताल में सेवाएं दी, इसी दौरान कोविड-19 की लहर में बैतूल भी आ गया। उस दौरान अपने छोटे से बच्चे को साथ-साथ रखकर उन्होंने CHC मुल्ताई में नौकरी की। मुलताई में ऑपरेशन थियेटर फंक्शनल न होने के कारण जिला अस्पताल बैतूल में अटैचमेंट लिया और सेवाएं देना प्रारंभ किया। लेकिन फिर उन्हें कुछ आतंरिक राजनीति के चलते जिला अस्पताल से मुलताई कर दिया गया। सरकारी तंत्र का गलत रवैया जब उन्हें रास नहीं आया तो उन्होंने अंतत: शासकीय सेवा से त्यागपत्र दे दिया और फिर एक निजी अस्तपाल में सेवाएं देना प्रारंभ किया। तीन सालों तक इस अस्पताल में सेवाएं देने के दौरान डॉ मेघा ने तय किया कि वे अपना अब हास्पीटल बनाएंगी और उत्कृष्ट सेवाएं मरीजों को अपने हास्पीटल में उपलब्ध कराएंगी। आखिर मेघा ने तीन पाटर्नस के साथ अपने हास्पीटल की नींव रखी। कुछ महीनों पहले ही बडोरा में डॉ मेघा ने सर्वसुविधायुक्त शतायु मल्टी स्पेशलिटी हॉस्पीटल की शुरुआत की।
शतायु सबके लिए
खुद को अपडेट रखने और मरीजों को उत्तम सेवाएं प्रोवाईड करने की चाहत में प्रारंभ किए शतायु हास्पीटल ने कुछ ही महीनों में मरीजों का भरोसा भी हासिल कर लिया है। डॉ मेघा बताती है कि राहत इस बात की है कि शतायु में छोटी से छोटी और बड़ी से बड़ी बीमारी का ईलाज एवं सर्जरी की जाती है। वैक्सीन एवं कैंसर स्क्रीनिंग की भी सुविधा है। शतायु में काम के साथ-साथ वह अपने बच्चे को भी पूरा समय देती है। वह कहती है कि भले ही मैं उसे इस दुनिया में लाई हूं पर वही अब मेरी दुनिया है। उनका कहना है ईश्वर की कृपा से बेटा अधिराज पढ़ाई और अन्य गतिविधियों में अव्वल रहता है। डॉ मेघा को उत्कृष्ट सेवाओं एवं संघर्ष के लिए “मणिकर्णिका” एवं “एंपावर्ड विमेन अवार्ड” से भी नवाजा गया है। डॉ मेघा भविष्य को लेकर कहती है कि उनका जीवन हमेशा ईश्वर की योजना से चला है, वे चाहती है कि अच्छे काम करें और लोगों की हमेशा मदद करें। वे गिव नामक संस्था से जुडक़र भी समाजसेवा भी कर रही है। निस्वार्थ रुप से मानव एवं पशुओं की सेवा करने वाले कुछ समाजसेवियों को वह अपनी प्रेरणा मानती है।
और वह मुस्कुराते रहता है….
वैसे तो प्रत्येक व्यक्ति के जीवन में चुनौतियां होती है, लेकिन डॉ मेघा मानती है कि सबसे बड़ी चुनौती एक सशक्त महिला होती है, जो स्वयं बल पर सब कुछ कर रही हो। जब महिला ईमानदार और स्पष्टवादी हो तो अनायास ही लोग उसका विरोध करने लगते है, न जाने क्यों लोगों को यह पसंद नहीं आता। खासकर जब वह अकेले सब कुछ करना चाह रही हो और करने में सफल हो रही हो तो लोग उसे अपनी हार समझने लगते है और उसे नीचा दिखाने और दबाने की पूरी कोशिश करते है। ऐसे में हर दिन, हर समय उसे खुद को साबित करना होता है। डॉ मेघा कहती है कि उनका संघर्ष सिर्फ उनका नहीं है उनके बेटे अधिराज का भी है। जिस उम्र में वह है उसे मां और परिवार का पूरा समय मिलना चाहिए, लेकिन मां के साथ उसका भी ज्यादातर वक्त ऑपरेशन थियेटर या अस्पताल में बीतता है। कभी-कभी आधी रात में भारी नींद में भी जब इमरजेंसी में बेटे को हास्पीटल लेकर जाना पड़ता है और वह ओ टी में साथ होता है, डॉ मेघा बताती है कि उस वक्त महसूस होता है कि जितना सेक्रिफाइस मैं कर रही हूं उससे ज्यादा स्ट्रगल और सैक्रिफाईस मेरा बच्चा कर रहा है। उनका मानना है आत्मनिर्भर बनने के लिए जरुरी है आत्मसम्मान के साथ जीना।